॥ अष्टक ॥
जय परातपरे पुर्ण चिन्मये।
भगवती महा मंगलालये।
अगाध ईश्वरी विश्व व्यापिके।
शरण तुज मी आई पाव चंडीके॥१॥ धृ…..
विषय जाल हे चहुकडे अती।
कामक्रोध हे व्याधृ गर्जती।
रक्षी संकटी भ्रांती नासिके॥२॥ शरण…..
काही नाठवे विचार हा मनी।
भूमी व्यर्थ मी असे या मनी।
प्रकट होई तु ज्ञान दायी के ॥३॥ शरण…..
हे दयानिधे त्रिपुर सुंदरी।
सर्व रक्षी तू भेट लवकरी।
जोशी कुळ ते विनंवी चंडीके ॥४॥ शरण…..